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दलित होने की वजह से Ph.D प्रवेश परीक्षा में पास होने के बावजूद नहीं मिला दाखिला

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छत्तीसगढ़ के एक मात्र गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय से एक बेहद शर्मनाक खबर निकलकर सामने आई है। यहां आरक्षित वर्ग के एक छात्र को पीएचडी से वंचित कर दिया गया है। उस समाज के छात्र को जिस समाज के गुरु के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय बना है।

जब सन् 1983 में बिलासपुर में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी, तब यह कहा गया था कि इस इलाके के वंचित लोगों को उनका हक और अधिकार दिलाने का यह सबसे बड़ा शिक्षा का केन्द्र बनेगा। आज विश्वविद्यालय केन्द्रीय हो गया लेकिन आरक्षित वर्ग के स्टूडेंट्स अपने ही इलाके के विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं।

प्रवेश परीक्षा में पास हैं गणेश मगर नहीं मिल रहा दाखिला

विश्वविद्यालय के भीतर मनमानी इस कदर है कि आरक्षित सीट होते हुए भी स्टूडेंट को अयोग्य बताते हुए उन्हें बाहर कर दिया जा रहा है। जिस स्टूडेंट का हम ज़िक्र कर रहे हैं, उनका नाम गणेश कोसले है। अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र गणेश, जांजगीर ज़िले में कोसमंदा गाँव के रहने वाले हैं।

गणेश कोसले इतिहास के छात्र हैं। वह इतिहास में पीएचडी करना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा दिया। प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें मौखिक साक्षात्कार के लिए विशेषज्ञों के बीच बुलाया गया।

चयन समिति के सदस्यों के समक्ष गणेश कोसले उपस्थित हुए। गणेश के मुताबिक चयन समिति में डाॅ. सीमा पांडे (एचओडी), प्रो. प्रदीप शुक्ला और  डाॅ. घनश्याम दुबे शामिल थे। इसके साथ ही एक्सपर्ट के तौर पर इतिहासकार रमेन्द्र नाथ मिश्र का भी नाम था लेकिन मिश्र जी मौजूद नहीं थे।

महज़ औपचारिकता के लिए पूछे गए सवाल

गणेश का कहना है कि समिति में उनसे सिर्फ प्रो. प्रदीप शुक्ला ने चार सवाल किए जो कि सामान्य सवाल थे। मतलब महज़ औपचारिकता थी क्योंकि वह प्रवेश प्ररीक्षा अच्छे नंबरों के साथ उत्तीर्ण कर चुके थे। इसके अलावा दो आरक्षित सीट में एक सीट पर प्रवेश बर्मन नामक स्टूडेंट का चयन हो गया था।

कॉलेज
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय।

शेष एक आरक्षित सीट पर उनका चयन होना स्वभाविक था क्योंकि उनके अलावा और कोई दूसरा स्टूडेंट नहीं था। विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र होने के नाते उनके पक्ष में निर्णय स्वभाविक थी। यह बात गणेश को प्रो. प्रदीप शुक्ला ने भी कही थी कि आप तो यहीं के छात्र हैं।

गणेश जो सवाल प्रदीप शुक्ला ने किए थे, वे इस तरह थे (सभी सवाल प्रो. प्रदीप शुक्ला ने किया)

सवालः– आपका नाम क्या है?

जवाबः- सर, मेरा नाम गणेश कोसले है।

सवालः- कहां तक पढ़े हो?

जवाबः- सर मैंने जांजगीर-चांपा से बी.ए. किया है। उसके बाद यहीं (गुरू घासीदास विश्वविद्यालय) से मैंने इतिहास विषय में एम.ए. किया है।

सवालः- क्यों शोध करना चाहते हैं जी?

जवाबः- सर, मैं खोज करना चाहता हूं और शोध कर आधुनिक मानव समाज ने जिसे भूला दिया, जो हमारे इतिहास से छूट गया उसे मैं वर्ल्ड को बताना चाहता हूं। मूझे आगे पढ़ना और सिखना है।

सवालः- शोध का विषय?

जवाबः- सर, मैं सबरिया जनजाति पर शोध करना चाहता हूं, जो जाजंगीर चांपा में बहुत हैं।

चयन परीक्षा में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया

इन सबके बीच 30 अप्रेल 2019 को अपना रिज़ल्ट देखने के बाद गणेश दंग रह गए। उनका नाम चयनित शोध छात्र के रूप में नहीं था। उन्होंने इसकी जानकारी के लिए डीन से संपर्क किया। डीन एचओडी डॉ. सीमा पांडे ने उन्हें बताया गया कि वह पीएचडी नहीं कर सकते हैं क्योंकि इसके लिए वह योग्य नहीं हैं। उन्हें नॉट फॉर सूटेबल (NFS) बताते हुए बाहर कर दिया गया। जबकि यह निर्णय बिल्कुल गलत था।

गणेश कोसले का यह भी आरोप है कि चयन प्रकिया में आरक्षण के नियमों का पालन भी नहीं किया गया। चनय समिति में आरक्षित वर्ग से एक भी सदस्य नहीं था। सभी सदस्य सामान्य वर्ग के थे। वह अपनी शिकायत लेकर कुलपति प्रो. अंजलि गुप्ता के पास पहुंचे लेकिन कुलपति ने मिलने से इंकार कर दिया।

थाने में शिकायत करने पर भी कोई जवाब नहीं

उन्होंने इस मामले की शिकायत विशेष थाना में की लेकिन थाना इसे हस्तक्षेप योग्य नहीं मानते हुए किसी तरह की कार्रवाई से इंकार कर दिया। फिलहाल गणेश कोसले अपने अधिकार को पाने के लिए संघर्षरत हैं। विश्वविद्यालय की इस मनमानी के खिलाफ लगातार वह प्रदर्शन कर रहे हैं। गणेश ने उच्च शिक्षा मंत्री तक अपनी शिकायत पहुंचाने के साथ-साथ मुख्यमंत्री के नाम भी ज्ञापन दिया है। फिलहाल वह बेहद तनाव और अवसाद में हैं।

वहीं, गणेश कोसले से संबंधित मामले में हमने केन्द्रीय विवि में इतिहास विभाग के एचओडी डॉ. सीमा पांडे और कुलपति प्रो. अंजलि गुप्ता से संपर्क किया लेकिन किसी ने भी फोन रिसीव नहीं किया। लिहाज़ा यह पूरी खबर गणेश कोसले की शिकायत के आधार पर लिखी गई है क्योंकि केन्द्रीय विश्वविद्यालय की ओर से कोई जवाब इस पर नहीं मिल रहा है।

सवाल यह उठ रहा है कि जब आरक्षित सीट के कोटे को पूरा करना है और इस कोटे से प्रवेश परीक्षा पास करने वाले गणेश कोसले अकेले ही हैं, फिर उन्हें पीएचडी में प्रवेश क्यों नहीं दिया जा रहा है? आखिर गणेश कोसले में ऐसी कौन सी अयोग्यता है, जिसे ना केन्द्रीय विवि के प्रोफेसर बता रहे हैं, ना चयन समिति के सदस्य और ना ही कुलपति?

क्या चयन समिति में आरक्षण प्रकिया का पालन वाकई नहीं किया गया? और सबसे ज़रूरी यह है कि कुलपति अपने एक शोषित छात्र से मिलना क्यों नहीं चाहती हैं? आखिर एक अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र के साथ केन्द्रीय विश्वविद्यालय का ऐसा रवैया क्यों? अब यही सवाल छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल से भी है। मंत्री जी, देखिए हो क्या रहा है, चल क्या रहा है? क्या आप इस मामले में छात्र गणेश कोसले को न्याय दिला पाएंगे?

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