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दिल्ली की छात्राऐं अब और गैरबराबरी नही सहेगीं –पिंजरातोड़ आंदोलन की दास्तां

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pinjra tod campaign posters

जया निगम

आई पी कॉलेज के हिस्ट्री ऑनर्स में तीसरे साल की एक छात्रा (नाम गोपनीय रखने की शर्त पर) बताती हैं, "महिला छात्रावास में प्रशासन का रवैया बेहद तानाशाही भरा है। मुझे पहले और दूसरे साल में हॉस्टल मिला था। वहां अक्सर पानी खत्म होने से लेकर, मेस में कॉक्रोच मिलने तक की दिक्कतें होती थीं। लड़कियों ने जब हॉस्टल अधिकारियों के सामने धरना देकर स्टूडेंट यूनियन बनाने की बात रखी तो उन्हे ‘हां’ करना पड़ा लेकिन कुछ हुआ नहीं। अगले साल मुझे हॉस्टल देने से इंकार कर दिया गया। मेरे पापा, प्रोवोस्ट से रिक्वेस्ट करते रहे। उनकी मजबूरी देख कर मैंने ‘सॉरी’ भी बोला लेकिन उन्होने मुझे हॉस्टल नहीं दिया और न ही मेरे पापा से ठीक से बात की।"

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क्यूं 'पिंजरातोड़'

पिंजरातोड़ की फाउंडर, मिरांडा हाउस की पूर्व छात्रा देवांगना बताती हैं "हॉस्टल सीट न देना, विश्वविद्यालय के पास लड़कियों को नियंत्रित करने का सबसे असरदार तरीका है। लड़कियों के हॉस्टल में रहने की प्राथमिकता का इस्तेमाल अक्सर उन्हे धमकाने के लिये किया जाता है। इसीलिये हमारी मांग है कि हॉस्टल के साथ पीजी भी लैंगिक गैरबराबरी के नियमों से संचालित होने के बजाय हमारे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन तत्काल प्रभाव से बंद करें।"

#पिंजरातोड़ का फेसबुक पेज ऐसी दास्तानों से भरा पड़ा है। ये लड़कियां एल एस आर, मिरांडा हाउस, किरोड़ीमल और दौलतराम से हैं। इनमे से कुछ अंबेडकर विश्वविद्यालय, जेएनयू और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्ही से भी हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राओं शांभवी और सुभाषिनी को इस आंदोलन की अगुआ होने के नाते कथित तौर पर एबीवीपी के कुछ कार्यकर्ता यौन हमलों की धमकी भी दे चुके हैं।

सुभाषिनी कहती हैं "लैंगिक गैरबराबरी के नियमों से महिलाओं की पूरी दुनिया संचालित होती है लेकिन अब हम जैसी कुछ लड़कियां जो शायद महिलाओं का सबसे सचेतन और सशक्त हिस्सा हैं वो इन समस्याओं के खिलाफ सामूहिक रूप से खुद को अभिव्यक्त करना सीख रहा है।"

विश्वविद्यालयों का रवैया

सोशल मीडिया में अपनी बातें जगजाहिर कर रही लड़कियां इन छात्रावासों की पूर्व छात्रायें हैं लेकिन दिल्ली और जामिया वि. प्रशासन के खौफ से, महिला छात्रावासों की मौजूदा छात्रायें अब भी अपनी पहचान उजागर करने का खतरा उठाने को तैयार नहीं हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के ज्वॉइंट डीन और मीडिया प्रभारी डॉ मलय नीरव के मुताबिक, "हमें इस आंदोलन की कोई जानकारी नहीं है। विश्वविद्यालय के कॉलेज अपने निर्णयों के लिये आत्म-निर्भर हैं।"

जामिया और दिल्ली वि. में पहलेपहल गुरिल्ला रणनीति अपना रहीं ये छात्रायें, अब सोशल मीडिया में मिल रहे समर्थन की वजह से आर-पार की लड़ाई लड़ रही हैं। आगामी 10 अक्टूबर को आयोजित एक जनसुनवाई के जरिये वे दिल्ली महिला आयोग तक अपनी बात पहुंचाने वाली हैं। इसके लिये एक ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षार अभियान चलाया जा रहा है।

जामिया विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास से निकला ये मुद्दा दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाती मालीवाल के हस्तक्षेप से गर्मा गया था। उन्होने विश्वविद्यालय प्रशासन को महिला छात्रावास की समय सीमा रात 8 से 7:30 किये जाने और नाइट आउट पूरी तरह खत्म किये जाने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

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