कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर भी बता दे रहा हूं। हम सबके लिये मेडिकल परिक्षा पास करना एक सपना सरीखा है। अगर मेडिकल पास करके AIIMS मिल जाये तो फिर कहना ही क्या!
इस देश में ना जाने कितने लाखों बच्चे हर साल मेडिकल की परीक्षा में बैठते हैं, वे रात-दिन मेहनत करते हैं, फिर जाकर मेडिकल एग्ज़ाम में पास होंगे या नहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। लेकिन एकबार एडमिशन हो जाये तो फिर छात्रों को लगता है कि अब बेहतर मेडिकल शिक्षा उन्हें मिल पायेगी।
लेकिन नहीं, अगर सरकार निकम्मी हो तो आप भले AIIMS में एडमिशन पा जायें, आपको अपनी छोटी-छोटी ज़रुरतों को पूरा करने के लिये, मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के लिये, ज़रूरी बेसिक सुविधाओं के लिये सड़क पर उतरना पड़ेगा, 800 किमी इस तपती गर्मी में पैदल चलना पड़ेगा, पैरों में छाले पड़ जायेंगे और फिर भी स्थिति ठीक होगी इसकी कोई गांरटी नहीं।
क्योंकि सरकार, देश की जनता और सारा तंत्र अभी चुनाव लड़ने, हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद करने में व्यस्त है।

फिलहाल मामला AIIMS भोपाल का है। जहां के छात्र स्थायी डायरेक्टर की नियुक्ति के लिये संघर्ष कर रहे हैं और अब पैदल चलकर भोपाल से दिल्ली आ रहे हैं ताकि स्वास्थ्य मंत्रालय, प्रधानमंत्री उनकी बात को सुनें।
पिछले 2015 से उनके पास कोई स्थायी निदेशक नहीं है। इसकी वजह से छात्रों को कई असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें छोटे-छोटे कर्मचारियों की तानाशाही झेलनी पड़ती है।
इन्हीं सब मांगों को लेकर वे अपने कॉलेज में भी धरने पर बैठे हैं। लेकिन जब थक हार गए तो फिर दिल्ली आने का फैसला लिया है।
दिल्ली से बहुत उम्मीद है उन्हें, लेकिन उनको मालूम नहीं, ये सरकार बहरी हो चुकी है।
उसे छात्रों से, किसानों, आम जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है। वह चाहती है कि छात्र क्लासरूम में ना रहें, यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का माहौल ना रहे, किसान अपने खेतों में हल न चलायें, बल्कि सब सड़क पर उतर जायें और बदहाली में जीयें. …
बाकी प्राइवेट कंपनियों को सबकुछ बेचने का एजेंडा ज़िन्दाबाद हईये है….
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