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“जिन्ना तो एक बहाना है असल मकसद तो AMU की साख गिरानी है”

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पिछले एक हफ्ते से लगातार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मीडिया हॉउसेस और संघ परिवार के बीच चर्चा का विषय बनी हुई थी। कभी काँग्रेस के नाम पर, कभी यूनिवर्सिटी में आरएसएस की शाखा स्थापित करने के नाम पर अब आखिर में हर तरफ नाकामी मिलने के बाद, रुख किया गया एक ऐसी कॉन्ट्रोवर्सी का जिसका रिश्ता हिंदुस्तान की बंटवारे से जुड़ा हुआ है। वो शख्सियत कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान के कायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह हैं।

यूं तो ये कोई नई बात नहीं है जब जिन्नाह का नाम लेकर सियासत को अंजाम दिया जा रहा था, मगर इस बार सिर्फ बात सियासत की नहीं थी।बल्कि बात थी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की, जिसकी बुनियाद  हिंदुस्तान की कई मुख्तलिफ हस्तियों ने मिल कर रखी, और आज़ादी की लड़ाई में एक अहम रोल अदा किया। मगर बदकिस्मती से पिछले कुछ दशकों से उसी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को कभी आतंकवादियों का अड्डा बताया तो कभी कट्टर सोच को बढ़ावा देने वाले इदारों में शुमार किया जाता है।

इस बार एएमयू को तबाह करने की कोशिश के लिए जिन्नाह नाम का एक और मंसूबा तैयार किया गया। सोमवार से लेकर आज तक जो भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुआ, जिस वजह से स्टूडेंट्स सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं उसकी असली वजह संघ में पल रही वो मानसिकता है जो ना तो किसी यूनिवर्सिटी को सही तरीके से चलते हुए देखना चाहती है, ओर ना ही इतिहास के वर्क़ों में खुद की कमियों को ज़ाहिर होते हुए। इसीलिए एक के बाद एक तालीमी इदारों पर हमला किया जाता है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर हमला सिर्फ, एक इदारे पर हमला नहीं बल्कि ये हमला था अलीगढ़ में आये हुए साबिक़ उप राष्ट्रपति और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे श्री हामिद अंसारी के मौजूद रहने पर, जो की घटना स्थल से 50 मीटर की दूरी पर VIP गेस्ट हाउस में ठहरे हुए थे। इस हमले के ज़रिये वो हमलावर, एक पैगाम देना चाहते थे कि हम किसी संविधान और कानून को नहीं मानते। हमारी नज़रों में किसी भी इंसान का कोई वजूद नहीं चाहे वो हिंदुस्तान के सबसे बड़े औहोदों में से ही एक क्यों न हों।

ये भी कतई नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता कि जो विचारधारा गांधी जी की कुर्बानियों को खोखला मानती है और गोडसे जैसे आतंकवादी को अपना हीरो, वो जिन्नाह या फिर हामिद अंसारी जैसे लोगों के इस देश में योगदान को कहां मानेगी? जिन्नाह से पहले हिंदुस्तान में टू नेशन थ्योरी की हिन्दू महासभा में वकालत करने वाले सावरकर को आज मिसाल के रूप में जाना जाता है और संघ की शाखाओं में उनकी तस्वीरे मौजूद हैं, जिस इंसान ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को ख़त्म करने की बात की, और हिंदुत्व की बात की वो असल में खुद एक नास्तिक था।

अब ज़रा रौशनी डालते हैं, जिन्ना की तस्वीर आखिर एएमयू में क्या कर रही थी और उसका अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क्या रिश्ता है। तो बात दें कि आज़ादी से पहले सन 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना को एएमयू के छात्र संघ की उम्रभर की मेंबरशिप से नवाज़ा गया था और तभी से उनकी तस्वीर महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आज़ाद के साथ एएमयू के यूनियन हॉल में लगी हुई है। और ये कोई नई बात नहीं कि जिन्ना का नाम इस मुल्क से कई तरह से आज भी जुड़ा हुआ है, मुम्बई मैं आज भी जिन्नाह हाउस, और गंटूर मैं जिन्नाह टावर जैसी जगहें हैं। यही नहीं नैशनल म्यूजियम में जिन्ना की गांधी के साथ तस्वीर, ओर श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जन संघ के फाउंडर की जिन्ना के साथ तस्वीर देखी जा सकती हैं, मगर आज तक तथाकथित देशभक्तों ने उन चीज़ों की तरफ गौर नहीं किया।

इन सभी फैक्ट्स ये ये ज़ाहिर होता है कि जिन्ना तो एक बहाना था असली मकसद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माहौल को खराब करना और भगवाकरण करने की एक कोशिश को अंजाम देना था। यही नहीं, यहां साफ ज़ाहिर होता है कि किस तरह साबीक उप राष्ट्रपति के वकार को ठेस पहुंचाने की कोशिश की गई और साफ लफ्ज़ों में कहा गया कि हम संविधान में यकीन नहीं रखते हैं और ना ही किसी यूनिवर्सिटी को सही तरीके से चलने देंगे।


फोटो आभार- AMU JOURNAL

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