BHU में गर्ल्स हॉस्टल के नियमों को लेकर उठे विवाद पर VC गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने Youth Ki Awaaz से बात की।
प्रशांत- कुछ स्टूडेंट्स ने RTI फाईल करके गर्ल्स हॉस्टल के नियमों की जानकारी मांगी थी, जिसके जवाब में बहुत से ऐसे नियम सामने आएं जो महिला अधिकारों का दमन करती है, जैसे 8 बजे तक आ जाना या छोटे कपड़े ना पहनना।
VC– ये आज का नियम नहीं है, हम आपसे एक निवेदन करेंगे कि यूथ तो यूथ है, लेकिन हमलोग परिपक्व हैं हमारी कुछ ज़िम्मेदारी बनती है, क्या ये ठीक रहेगा कि वो 10.30 बजे हॉस्टल से निकल कर जिसके साथ चाहे घूमे? can it be permitted?
प्रशांत– नहीं किसी के साथ की बात नहीं, मान लीजिए की 8 बजे के बाद कुछ काम हुआ तो?
VC– हमारा निवेदन है कि हम इसको जेनेरल प्रॉब्लम के बजाए पर्सनल प्रॉब्लम बनाए, हॉस्टल की लड़कियां बेशक बाहर जा सकती हैं लेकिन वो वार्डन को बताएं कि कहां और किसके साथ जा रही हैं, ये गलत है क्या?
प्रशांत– तो ये प्रोविज़न है क्या कि बता के जा सकती हैं स्टूडेंट्स?
VC– बिलकुल है, how can university do it कि किसी को निकलने ना दे, लेकिन नॉर्मली हमारे हॉस्टल के अंदर सारी फैसिलिटीज़ हैं, कैंटीन है सबकुछ है, इंटरनेट कनेक्शन है। तो आपको बाहर जाने की ज़रूरत अपने किसी काम के लिए नहीं है।लेकिन हां हम ये आज़ादी नहीं देंगे कि हमारे यहां 90 हॉस्टल्स हैं जिसमें करीब 8-10 हज़ार लड़कियां रह रही हैं, 14-15 हज़ार लड़के रह रहे हैं, ये जब चाहें किसी के कमरे में घुस जाएं ये फ्रिडम BHU में नहीं है।
प्रशांत– मान लीजिए 8 बजे के बाद किसी को भूख लगती है तो?
VC– तो हमारे हॉस्टल के अंदर कैंटीन है।
प्रशांत– तो क्या वो कैंटीन 24 घंटे खुली रहती है?
VC– बिलकुल, लेकिन आप ये बताइये कि 12 बजे के बाद किसी को भूख लगे ये कोई तरीका है क्या?
प्रशांत– सर कोई अगर रात में पढ़ाई कर रहा है तो चाय पीने का तो मन करेगा ना।
VC– तो आप जाएं, वॉर्डन को बताएं, वहीं रहती हैं सब।
प्रशांत– एक रूल और है सर कि उचित कपड़े पहने लड़कियां, ये उचित कपड़े कौन से होते हैं सर ये समझ में नहीं आता।
VC– आप एक फादर के रूप में विचार करिए समझ में आएगा, पत्रकार के रूप में नहीं, पिता के रूप में देखिए की उचित कपड़े क्या होते हैं।
प्रशांत– तो मतलब वो सिर्फ रात में कपड़े उचित-अनुचित हो जाते हैं, कि पूरे कपड़े पहने?
VC– नहीं नहीं हमने कोई ड्रेस डिफाईन नहीं की है, कई केसेस यहां हुए हैं, जैसे लिव इन रिलेशनशिप में लड़कियां रही लड़कों के साथ, और बाद में शादी करने से मना कर दिया, और वो इस बात को लेकर यूनिवर्सिटी में खड़ी हो गईं, ऐसे कम से कम आधा दर्जन केसेस हमारे यहां चल रहे हैं। अब वो सुसाईड करने की टेंडेंसी में आ गईं, तो आप हमारी भी समस्या सुनिए, सिर्फ स्टूडेंट्स को मत सुनिए, एक गार्जियन की विवशता को आप समझिए कि कितनी कठिनाई है हमें कि जब इस तरह कि समस्याएं खड़ी होती हैं तो हम क्या करते हैं। तो इसलिए ये हमारे यूनिवर्सिटी का बहुत पुराना नियम है कि 8 बजे के बाद अगर किसी लड़की को बाहर जाना हो तो वॉर्डन को बता कर के और किसके साथ जा रही है ये बता कर के जाए
प्रशांत– कुछ लड़कियों ने ये भी बताया है कि मान लीजिए कि किसी कारणवश 10 मिनट भी लेट हो जाता है तो ऐसा…
VC(सवाल को रोकते हुए)- आपको लगता है कि वो सही कह रही होंगी, आपको लगता है कि ऐसा किया जाएगा, जो यूनिवर्सिटी 100 वर्षों से अपनी हॉस्टल चला रही है वहां अचानक ये समस्या कहां से आ गई?
प्रशांत– यही तो मैं भी पूछ रहा हूं सर।
VC– मैं बता रहा हूं आपको, यो जान बूझ करके इस विश्वविधालय में एक ग्रुप है जो इन विषयों को बड़े ज़ोर शोर से उठा रहा है, ये कोई नइ चीज़ नहीं है, ये जब से विश्वविधालय बना है तब से यहां लड़के-लड़कियां बड़ी तादाद में साथ रहते हैं, तो हमारे यहां कोई नया रूल नहीं बना, तो इन्होंने पहले कभी कोई सवाल क्यों नहीं उठाया। अब ये प्राईम मिनिस्टर कॉंस्टिट्यूएनसी होने के नाते, इस विश्वविधालय को डिस्टर्ब करने के नाते संदीप पांडे जैसे लोग यहां पर डेरा डाले हुए हैं। उनको मैंने इसिलिए निकाल दिया यहां से, क्योंकि वो पढ़ाते क्या थे मालूम है? ये कि kashmir is not an integral part of India, वो निर्भया पर बनी डॉक्यूमेंट्री यहां दिखाते थे जिसे भारत सरकार ने बैन कर दिया है। नक्सलाईट का उन्होंने सम्मान समारोह यहां किया उन्होंने। ये एक ग्रुप है जो BHU को डिसटर्ब करके देश में तमाशा खड़ा करना चाहता है।
प्रशांत– एक बेसिक सवाल ये भी है लोग जो सवाल उठाते हैं कि अगर 8 बजे का रूल है तो वो ब्वॉयज़ हॉस्टल में क्यों नहीं है?
VC– ये लड़कियों के तरफ से कोई शिकायत नहीं है, ये कुछ बाहर से आए लोग हैं जो ये कर रहे हैं, उनसे सीधा पूछिए कि आप की लड़की रह रही है हॉस्टल में क्या? आपको क्यों दिक्कत हो रही है? लड़कियों और लड़कों की बराबरी बिलकुल पूरी तरह से हमारे यहां है।
प्रशांत– सर सवाल तो वहीं पर रह गया कि लड़को के लिए ये रूल क्यों नहीं है?
VC– आप इस सवाल का जवाब मुझसे बेहतर खुद सोच के देख लिजिए। आइए कभी इसपर एक वर्कशॉप कर लेते हैं। अगर सबको ये लगता है कि ये नियम गलत है तो हम इसको रिव्यू करने के लिए भी तैय्यार हैं लेकिन ये नियम मैंने नहीं बनाया है। ये सब संदीप पांडे का किया धरा है, मैं एक मुकद्मा दायर करूंगा कि संदीप के कैंपस में घुसने पर प्रतिबंध लगाया जाए। मैं हॉस्टल हर महीने जाता हूं वहां कभी किसी लड़की ने तो मुझसे कोई शिकायत की नहीं, और हॉस्टल में रहना कम्पलसरी तो है नहीं, अगर इतनी दिक्कत हो रही है यहां तो कोई शर्त नहीं है कि हॉस्टल में ही रहना है। अगर आपको लग रहा है कि ये नियम इतना बेवजह है तो गार्जियन को बोलिए की बाहर व्यवस्था करें। ये लोग एक दिन इतनी समस्याएं खड़ी करेंगे कि पब्लिक यूनिवर्सिटी बंद हो जाएंगे। ये लोग सिर्फ अधिकार जानते हैं कर्तव्य नहीं जानते हैं।
प्रशांत– एक सवाल है सर, कि लड़कियों को कोई शिकायत नहीं है, शिकायत हो तो आवाज़ उठाएंगी कैसे, पहले ही एफिडेविट लिया जाता है कि धरना या विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे
VC– क्यों नहीं आवाज़ उठाएंगी, बिलकुल उठाएं, लेकिन धरना प्रदर्शन जिसकी ट्रेनिंग संदीप पांडे देते थे, बकायदा उन्होंने कोर्स में धरना पढ़ाना शुरु किया था, धरना कैसे दिया जाए ये हमारे यहां परमिटेड नहीं है
प्रशांत– लेकिन संदीप पांडे भी तो नए हैं, ये नियम भी तो पुराना ही होगा।
VC– सारे नियम पहले बनाए गए हैं और छात्रों के हित में बनाए गए हैं, आखिर लड़कों के साथ तो रेप नहीं होता है, आप बताईये जो दुर्घटनाएं घटती हैं वो लड़कियों के साथ ज़्यादा घटती है लड़कों के साथ तो नहीं घटती, इसलिए हम उसपर अगर सवाल खड़ा करेंगे तो क्या ये न्याय है लड़कियों के साथ?
प्रशांत– तो सर क्या ये बेहतर नहीं होगा कि हम इसके लिए लड़कों को बोले कि वो ऐसी स्थिती ना बनाए।
VC– बिलकुल ज़िम्मेदार ठहराएं लेकिन सुरक्षा की पहली ज़िम्मेदारी हमारी है सुरक्षा की, हम कुएं में कूद जाएं और फिर बोले कि देखो किसी ने हमें बचाया नहीं।
प्रशांत– मतलब लड़कियों का खुला घूमना कुएं में कूदने जैसा है?
VC– नहीं खुला घूमना नहीं, दिन भर खुला घूमें, केवल 8 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक ऐसा है, 24 घंटे आपने कहां से जोड़ दिया। हमारे कैंपस में सिर्फ छात्र नहीं आते, यहां से अराजक तत्व भी गुज़रते हैं, और इस समय थ्रेट पर्सेप्शन भी देश का बढ़ा हुआ है, इसलिए हमने ये कुछ नियम बनाए हैं। तो बहुत सारी चीज़ें हैं जिसे लोग बिना समझे मुद्दा बना देते हैं।
प्रशांत– गर्ल्स हॉस्टल से लाईब्रेरी तक बस चलाने की मांग की गई थी, जो की प्रॉस्पेकटस में भी लिखा है, तो जब ये मांग लेकर छात्र आपके पास आएं तो रजिस्ट्रार ऑफिस से जवाब आया कि महिलाओं का रात में पढ़ना अव्यवहारिक है।
VC– ऐसा नहीं कहा गया होगा, महिला रात में पढ़ेगी नहीं ये कैसे कह सकते हैं।
प्रशांत– देर रात को महिलाओं का पुस्तकालय आकर पढ़ना अव्यवहारिक है ऐसा रिटेन में है उनके पास।
VC– उनका ही नहीं, किसी का भी 24 घंटे पढ़ना अव्यवहारिक है। हम ऑवरऑल पर्सनैलिटी डेवलपमेंट सिखाते हैं, हम छात्रों के हिसाब से क्लास नहीं चलाते, छात्रों को हमारे हिसाब से रहना पड़ेगा, हमारी बात माननी पड़ेगी और हम भी उनकी बात मानेंगे।
प्रशांत– जहां पर सवाल आता है कि महिलाओं की आज़ादी हो वहां पर?
VC– महिलाओं की आज़ादी को कौन रोक रहा है, हमारी लाईब्रेरी 11 बजे रात तक खुली रहती है, उसके बाद बंद होती है, और वो लड़कियों के लिए भी बंद है और लड़कों के लिए भी बंद है और I am yet to find a university जहां 24 घंटे लाईब्रेरी खुली रहती है। तो फिर BHU को क्यों टारगेट बनाया जा रहा है। जो कंटेंट 11 बजे के बाद अपलोड किया गया है उसको आप देखिए फिर तय करियेगा की क्या हमेशा लाईब्रेरी खुली होनी चाहिए, पूरे कैंपस में इंटरनेट कनेक्शन है, लाईब्रेरी आने की क्या ज़रूरत है, अपने कमरे में पढ़िए।
प्रशांत– ये भी शिकायत है गर्ल्स हॉस्टल में इंटरनेट ठीक से नहीं चलता।
VC– हर कमरे में इंटरनेट कनेक्शन नहीं है एक कॉमन रूम है जहां है इंटरनेट है वहां पढ़िए, हर कमरे में किस विश्वविधालय में इंटरनेट है?हमें इतना पैसा थोड़े ही मिलता है कि हर स्टूडेंट के कमरे में इंटरनेट लगाई जाए। किसी लड़की को कोई दिक्कत नहीं है ये कुछ लड़कियां प्रायोजित हैं, जो ये मुद्दे उठा रही हैं।
हम स्टूडेंट्स के सामूहिक विकास के लिए समर्पित हैं। हो सकता है मुझे किसी विषय की समझ ना हो तो हम उसपर मिल कर चर्चा करेंगे और उसे ठीक करेंगे
प्रशांत– बहुत शुक्रिया सर
VC-शुक्रिया
(गिरीश चंद्र त्रिपाठी की तस्वीर BHU VC पोर्टल से साभार)
The post “स्टूडेंट्स को हमारे नियम से चलना होगा”- BHU के VC गिरीश चंद्र त्रिपाठी का इंटरव्यू appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.