मनुस्मृति के छंद 5.147-5.148 में लिखा गया एक महिला विरोधी नियम ‘एक स्त्री को कभी भी स्वतंत्र रहने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए ‘ हमारे समाज में ऐसे बसा की सदियां बीत गई लेकिन हम आज भी इसी सोच के तर्ज पर मॉडर्न इंडिया की नींव रख रहे हैं। अगर ये बातें आपको खोखली या तर्कहीन लग रही हैं तो आइये आपको बनारस के BHU कैंपस लेकर चलते हैं, ये तो हमारे अतिप्रगतिशील समाज और शिक्षा के पुरोधा होने का स्तंभ है ना।
आइये अब कैंपस से रुख करते हैं महिला छात्रावास का, बताइये हमलोगों ने छात्रावास भी बना दिया फिर भी आरोप ये है कि हम महिलाओं के प्रति मनुवाद से ग्रसित हैं। क्या कह रहे हैं, कोई गर्ल स्टूडेंट दिख नहीं रही हॉस्टल के आस पास, ज़रा अपनी घड़ी पर नज़र डालिये 8 बज गए हैं, और 8 बजे के बाद भला कोई लड़की अपने हॉस्टल से बाहर होती है क्या? कितनी असंस्कारी बात है ये। अभी अटेंडेंस चल रही होगी हॉस्टल में, हां भाई रात को अटेंडेंस ये इन्शोयर करने को कि जिसको सुरक्षा के नाम पर कैद किया गया है, वो सुरक्षित तो है।
वो देखिए एक लड़की आते-आते 10 मिनट लेट हो गई है, मतलब 8.10, अब किस काम से गई थी या क्या वजह हो गई देर होने की ये मायने थोड़े ही रखता है। मायने तय सीमा से ज़्यादा लिया गया वो 10 मिनट रखता है जिसका 1-1 मिनट उसके चरित्र का वर्णन करेगा और फिर कैरेक्टर सर्टिफिकेट बंटेगा पहले मेन इंट्री पर गार्ड से फिर हॉस्टल पहुंच कर हॉस्टल स्टाफ और फिर वॉर्डन से भी। उफ्फफ इसके तो वस्त्र भी अनुचित हैं, माने छोटे कपड़े, इतने बड़े कैंपस में इतने छोटे कपड़े, पाप है ये तो।
अच्छा आप कह रहे हैं कि विरोध करें, मतलब धरना प्रदर्शन जैसा? साहब जैसे इस देश में महिलाओं पर हम अपने सामाजिक और बौद्धिक नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए पुरूष प्रधानता की सड़ चुकी हांडी से मर्यादा का लेप निकालकर मलते हैं ना, वैसे ही इस कैंपस में भी लड़कियों को अनुशासन यानी डिसिप्लिन में रहना ज़रूरी है, और इसी डिसिप्लिन के अंदर आता है वो रूल जिसमें आप तय किये गए नियमों के खिलाफ अगर आवाज़ उठाएंगे तो आप पर डिसिप्लिनरी एक्शन लिया जाएगा।
BHU में थर्ड इयर में पढ़ने वाले रौशन, शांतनु और उनके दोस्त कई बार गर्ल्स हॉस्टल में लागू किए जाने वाले नियमों कि जानकारी के लिए RTI दाखिल कर चुके थे। हालांकि अधिकतर निराशा ही हाथ लगी लेकिन जब आखिरकार RTI का जवाब आया तो ऐसे नियम सामने आए जो कहीं भी साईट पर पब्लिकली मेंशन नहीं किए गए थे और महिला दमन का हथियार मात्र है।
यहां पर लगाए गए RTI के जवाब और गर्ल्स हॉस्टल की नियमावली को ध्यान से पढ़िए और देखिए कि कैसे लड़कियों को हिदायत दी जाती हैं कि कैंपस में छोटे कपड़े ना पहने, रात को फोन पर बात ना करें और किसी भी धरना या विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ना लें।

Youth Ki Awaaz से बातचीत में रौशन और शांतनु ने बताया कि जब प्रशासन से उन्होंने कई बार सवाल करने की कोशिश की इस भेदभाव पर, तो उन्हें कहा जाता था कि लड़कियों के लिए बनाए गए नियम से तुम्हें क्यों दिक्कत हो रही है। उन्होंने आगे बताया कि यूनिवर्सिटी के प्रॉसपेक्टस पर ये मेंशन किया गया है कि लाईब्रेरी से गर्ल्स हॉस्टल तक रात में बस की सुविधा दी जाती है, पर असल में ऐसा कुछ नहीं है। रौशन, शान्तनु के साथ जब कुछ छात्रों ने 24 घंटे लाईब्रेरी खोलने और गर्ल्स हॉस्टल से बस चलाने की मांग को लेकर हंगर स्ट्राईक किया तो रजिस्ट्रार ऑफिस से जवाब आया कि ”लड़कियों का रात में लाईब्रेरी में पढ़ाई करना का अव्यवहारिक है”
अब इस जवाब से अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन की व्यवाहारिक समझ कहां तक भ्रष्ट चुकी है।
(रजिस्ट्रार ऑफिस से आया नोटिस)
इस नोटिस में लिखे गया पांचवे प्वांइट को ध्यान से पढ़िए और अव्यवहारिकता की सीख लेते जाइए। जब ये नियम कागज़ों पर इतने संवेदनहीन लगते हैं तो जो स्टूडेंट्स इसे सह रही होंगी उनके लिए कितना मुश्किल होगा सबकुछ हमने ये जानने की भी कोशिश की।
BHU में 2013 से 2015 तक पढ़ी कृतिका बताती हैं कि हॉस्टल एक वक्त पर कैद जैसा हो जाता है, आपको कोई भी इलेक्ट्रिक उपकरण रखने की इजाज़त नहीं थी यानी कि आप हॉस्टल में इलेक्ट्रिक हीटर नहीं रख सकते। अब फर्ज़ करिए कि रात को आपको भूख लगी पढ़ते पढ़ते या चाय पीने का मन किया तो आप क्या करेंगे? बस सुबह होने का इंतज़ार क्योंकि कैंटीन रात तक खुली नहीं होती, 8 बजे के बाद आप बाहर निकल नहीं सकते और हॉस्टल में आप स्टोव या कुछ रख नहीं सकते। और इंटरनेट भी नहीं चलता ठीक से, जब इसकी शिकायत की तो कहा गया कि खुद ठीक करवा लो।
हैरानी की बात ये है कि जो शिक्षा आपको बराबरी का रास्ता दिखाता है, जो आपको अभिमान के साथ जीना सिखाता है जो आपको ये बताता है कि संविधान लिंग या किसी भी दूसरे आधार पर भेद भाव नहीं सिखाता, वही शिक्षा ग्रहण करते हुए आप ज़बर्दस्त भेद भाव का शिकार होते हैं, क्योंकि ब्वायज़ हॉस्टल में तो ऐसा कोई भी रूल नहीं है। वो या तो स्वतंत्र हैं नियमों के मूल रूल में या स्वतंत्र हैं नियमों के उल्लंघन का दंभ भरने में।
BHU से ही पढ़ी शिवांगी मित्तल ने Youth Ki Awaaz को बताया कि गर्ल्स हॉस्टलर्स के बारे में एक पॉप्युलर रवैय्या यही था कि हम हर वक्त हॉस्टल के बाहर किसी ना किसी खुराफात की फिराक में रहते थे, और इस सोच का नतीजा ये था कि अगर किसी बात को लेकर हम कम्पलेन करने जाते थे तो ये पहले से ही समझ लिया जाता था कि गलती हमारी ही है।
अगर आप थोड़ी देरी से पहुंचे तो आपके बारे में तमाम तरह की बाते सोची और की जाती थी, पैरेंट्स को कॉल किया जाता था, दरअसल कैंपस हीं क्यों ऐसा लगता था कि पूरा का पूरा बनारस रात को लड़कियों से खाली हो जाता है। और अगर आप सड़क पर निकल भी जाएं तो स्वतंत्रता कम और हमारी बनाई गई सभ्य समाज का डर ज़्यादा होता था। वहीं लड़कों पर कोई रिस्ट्रिकशन नहीं होता था, और लड़के वो काम भी कैंपस में कर पाने को स्वतंत्र थे जो कानून के हिसाब से भी दण्डनीय है मसलन ड्रग्स”
इन सारे रूल्स को पढ़ के और स्टूडेंट्स की बातें सुन कर एक सवाल तो ज़हन में ज़रूर आता है, कि ये नियम किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल का है या किसी सुधार गृह का? बात सिर्फ BHU में पढ़ने वाली कृतिका, अलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली अन्नू या पटना विमेन्स कॉलेज में पढ़ने वाली किसी स्टूडेंट की नहीं है, बात हमारी उस सोच की है जिसमे हम यह मान चुके हैं कि आवाज़ें तो उठेंगी, बाते तो होंगी लेकिन समाज को सुरक्षित रखने का एकमात्र तरीका महिलाओं का दमन ही है फिर वो चाहे देश का भविष्य तैयार करने वाली संस्थाओं में ही क्यों ना हो।
The post ‘लड़कियां कैंपस में छोटे कपड़े ना पहनें’- BHU गर्ल्स हॉस्टल या महिला दमन का केंद्र? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.