

Trigger warning: Mention of suicide
पिछले कई वर्षों से लगातार बच्चों में शिक्षा को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। खास कर अपने घरों से दूर अकेले एक कमरे में रह कर पढ़ने वालों के इस तनाव को समझ पाने वालों कि कमी उनको ऐसे रास्ते पर धकेल रही है जो उन्हें मौत के करीब ले जा रही है।
आत्महत्या से होती मौतें
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में छात्रों द्वारा आत्महत्या से होने वाली मौतों की संख्या में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। भारत में 2021 में हर दिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई। इनमें 2021 में 1834 मौतों के साथ महाराष्ट्र में आत्महत्या से सबसे अधिक छात्रों की मौत हुई। इसके बाद मध्य प्रदेश में 1308 और तमिलनाडु में 1246 मौतें हुईं। कोटा बच्चों के लिए पढ़ाई का एक हब बन कर उभरा है। खास कर मेडिकल और इंजीनियरिंग में सपने पूरे करने का, जो उनको प्रतिष्ठित संस्थानों में नामांकन के लिय तैयार करता है। पर क्या हो जब बच्चे ऐसी कठिन शिक्षा में जाने से पहले ही उसकी तैयारी में खुद को संभाल नहीं पाए और आगे जाने से पहले ही हिम्मत हार कर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा दें।
मानसिक स्वास्थ्य को देना होगा अहमियत
18 सितंबर 2023 की खबर के अनुसार कोटा में फिर एक छात्र की आत्महत्या से मौत हो गई। इस साल राजस्थान के कोचिंग हब में आत्महत्या का यह 26वां मामला है। इन घटनाओं ने बाहर पढ़ने वालें बच्चों को लेकर सभी को चिंता में डाल दिया है। पिछले दस साल के आँकड़े देखें तो बच्चों में आत्महत्या से मृत्यु में लगभग 70% की वृद्धि देखी गई है। आत्महत्या से मरने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या से चिंतित, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिकों ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सालों से स्कूलों के लिए मजबूत मानसिक स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने पर जोर दे रहे हैं। इसके साथ ही सामाजिक मंचो के जरिये इस मुद्दे पर बच्चों के माता-पिता से बात करने की भी वकालत की जा रही है।
सीलिंग पंखा बदलना हल नहीं
मौजूदा हालात देखते हुए कई आईआईटी ने हॉस्टल के कमरों में सीलिंग फैन हटाकर टेबल फैन लगाने शुरू किए है। कोटा के लिए भी कई गाइडलाइंस जारी की गई है। पर सवाल यह है कि क्या ये बाचतीच उतनी कारगर हो पा रही है। आखिर बच्चों में यह तनाव बढ़ता क्यों जा रहा है? और क्या उसपर कोई काम करेगा! बच्चों में इन तनावों के कुछ साफ़ दिखाई देने वाले कारण है जिनपर हमेशा बात करते रहने और उसका हल निकालने कि जरूरत है-
बच्चों की रुचि की अहमियत क्यों नहीं
बढ़ते प्रतियोगिता के बीच माता- पिता अपने बच्चों को बिना उनकी राय जाने और बिना उनकी खास रूचि के डॉक्टर, इंजिनियर और सिविल सर्विसेस की तैयारी में झोंक देते हैं। बिना सही करियर काउंसलिंग के यह बच्चों में तनाव के पीछे सबसे बड़ा कारण उभरकर आ रहा है। दूसरा कारण है अकेलापन, जो एक अंजान शहर में बच्चों पर हावी होता है, जिसमें कोचिंग सेंटर कोई खास मदद नहीं कर पाते हैं। तीसरा कारण है बढ़ती महंगाई, परिवार के भेजे पैसों के साथ किसी महंगे शहर में अकेले रहना और हर बार सिर्फ यह सुनना कि आपको एक बार में या दूसरी बार में ही परीक्षा पास कर परिवार के आर्थिक बोझ को कम करना है| कोचिंग कि महँगी फीस, रहने की जगह और खाने का बंदोबस्त करने में जो समस्या आती है उसपर कोई काम नहीं करना चाहता है। ऐसे में बच्चे पढ़ाई को समझने से अधिक, इस आर्थिक बोझ के साथ पढ़ाई में पास या फेल से डरने लगते हैं।
अच्छे नंबर ही सब कुछ नहीं
चौथा कारण है दिन- रात परीक्षा की ही तैयारी करना, जहाँ सिर्फ एक ही बात होती है कि नंबर सबसे जरूरी है और ये नम्बर ही आपको भविष्य में आगे ले जा सकते हैं। अच्छे नंबर और रैंक लाने पर नामी संस्थाओं में एडमिशन मिलेगा और वही सबसे अच्छा है। यह सब होता है बिना बेसिक समझाए। जहाँ ज्यादातर बच्चे जबरदस्ती धकेले गये हो उनको सिर्फ यह बताना कि परीक्षा में पास होना ही सबसे जरूरी है। सिर्फ शिक्षा के बाल पर या शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को ज्यादा देर तक आगे नहीं ले जा पाता।
कोचिंग ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता नहीं
पांचवा कारण है समाज में परिवारों की बढ़ती सनक कि बच्चा सिर्फ कुछ ही क्षेत्रों में आगे बढ़ सकता है और उसमें कोचिंग दिलवाना सबसे जरूरी है। जबकि आज कोचिंग शिक्षा का केंद्र होने के बजाय व्यापार की तरह फैला है। जिस कोचिंग से सबसे ज्यादा सफल अभ्यर्थी होंगे वह कोचिंग उतनी ही अधिक फीस के साथ आगे बढ़ रहा है। आज सिर्फ गिनती के ही संसथान है जो बच्चों के लिए सही दिशा प्रदान करते हुए एक आम परिवार द्वारा दी जा सकने वाली फीस के साथ चलते है। इन तमाम परिस्तिथियों से जूझता बच्चा अंत में खुद को एकदम अकेला मानकर किसी भी प्रतियोगिता से खुद को अलग कर लेता है और आत्महत्या की ओर देखने लगता है। ऐसे में जरूरी है कि जो सबसे करीब हों वह बच्चों की मनोदशा को समझने का प्रयास करे और उनको सही राह दिखाए। इसके लिए ऐसी तमाम संस्थाओं को भी आगे आना होगा जिनका संपर्क बच्चो के साथ है।
संस्थानों में हो तनावमुक्त वातावरण और काउंसलिंग की सुविधा
कोचिंग में बच्चों की कोई तय संख्या नहीं होती। ऐसे में कोई बच्चा पढ़ाई और अपनी मनोदशा को लेकर चिंतित है या बुरे ख्याल मन में लेकर घुम रहा है, यह पता लगाना कठिन कार्य है। इसके लिए इन संस्थाओं के भीतर तनावमुक्त वातावरण के साथ काउंसलिंग की सुविधा होनी चाहिए। सिर्फ फीस लेकर सबको एक ही रेस के लिए तैयार करने वालों को भी बच्चो के प्रति जवाबदेय होना चाहिए। इन संस्थाओं को अपनी बढ़ती फीस को भी देखने की जरूरत है, जिसमें लगातार वृद्धि हो रही है।
जीवन में तालमेल है जरूरी
कोई भी बच्चा समाज का ही अंग है और पढ़- लिख कर भी उसे समाज में ही काम करना है। इसलिए उनके भीतर सामाजिक जुड़ाव बना रहे, यह बेहद जरूरी है। मोबाईल और इन्टरनेट की दुनिया के अलावा जो असल जीवन है उसके साथ शिक्षा का तालमेल बैठाना बेहद जरूरी काम है, जिसमें शैक्षणिक संसथान बच्चों को सहयोग दे सकते हैं। देश के जिन भी इलाकों में ऐसे कोचिंग हब है वहां के समाज को भी बदलने की जरूरत है। किसी भी तरह के शिक्षा वाले क्षेत्रों में लोगों की कमाई का सबसे बड़ा कारण दूर-दराज से आये बच्चे होते हैं। जो उनको किराये, खाने और दूसरे अन्य साधनों के लिए रूपए देते हैं। लोग यह समझते है कि पढ़ने के बाद यह बच्चा लाखो कमाएगा, इसलिए साँस भी न ले जा सकने वाली गलीनुमा जगह के लिए भी खूब किराया लेते हैं।
महंगाई से परेशान बच्चे
समाज में पैसे की ऐसी भूख बहुत से बच्चों के जीवन पर भारी पड़ जाती है। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे तमाम क्षेत्रों में लोग खुद से ही एक तय सीमा में किराया ले या फिर सरकार उसको एक तय सीमा में बांधें, जैसे वह सरकारी कर्मचारियों के लिए किराये के मकानों का नियम लेकर चलती है। यह बच्चों एवं उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ को एक हद तक कम करने में मदद करेगा।
रोजगार के अनेक उपाय हैं
इसके साथ ही माता-पिता को यह समझना होगा कि रोजगार के कुछ ही सेक्टर नहीं है। हर बच्चे में आगे बढ़ने की अपार संभावनाएं होती है जिन्हें अनदेखा कर वो अपने बच्चे के विकास को ही रोक रहे हैं। इसके लिए सबसे जरूरी है बच्चों के साथ दोस्ती बनाकर रखना। उनके मन में चलने वाली हलचल को समझना और उसे सही-गलत समझाते हुए खुद के लिए रास्ता बनाने देना। किसी भी परिस्तिथि में परिवार अपने बच्चे के साथ खड़ा रहेगा, यह बात बच्चों को पता होनी चाहिए। बच्चे तभी बिना डरे किसी दूसरे माहौल में ढलने की कोशिश करेंगे।
यदि आप या आपका कोई जानने वाला संघर्ष कर रहा है, तो कृपया इन संकट/आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन का संदर्भ लें।