

फेलोशिप वह सहायता है जो शोधकार्य में नवाचार लाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है। भारत सरकार भी उच्च शिक्षा के लिए कई तरह की फेलोशिप शोधकर्ताओं को दे रही है। लेकिन हाल में ही सरकार की कई नीतियों ने उच्च शिक्षा में शोधकर्ताओं को चौंकाया है। इसका कारण यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय के उच्च शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप प्रदान किये जाते थे जिसे 2022 सत्र से बंद करने की घोषणा कर दी गई है।
उच्च शिक्षा के फेलोशिप में समस्या कहां है
उच्च शिक्षा में फेलोशिप की समस्या अत्यधिक मात्रा में है। कारण हाल में ही एक सूचना प्रकाशित की गई है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अब JRF जूनियर रिसर्च फेलोशिप की राशि 31000₹ से 37000₹ कर दी गई है। लेकिन अफ़सोस तब होता है कि जब इसी शोधकर्ताओं के साथ जो इनके शोधार्थी होते हैं जो JRF नहीं है उनको मात्र 8000₹ फेलोशिप दी जा रही है, जो दशकों पुराना राशि दर है। इससे शोधकर्ताओं में निराशा बढ़ रही है और गुणवत्तापूर्ण शोधकार्य चुनौती बनता जा रहा है।
देश में कितने तरह के विश्वविद्यालय है?
देश में मुख्यतः चार तरह के विश्वविद्यालय है। केंद्रीय विश्वविद्यालय(सेंट्रल यूनिवर्सिटी), राज्य विश्वविद्यालय(स्टेट यूनिवर्सिटी), डीम्ड यूनिवर्सिटी और निजी विश्वविद्यालय(प्राइवेट यूनिवर्सिटी)। उपरोक्त सभी विश्वविद्यालयों में शोधकार्य होते हैं। लेकिन नॉन नेट फेलोशिप सिर्फ़ केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को ही मिलता है जिसकी धनराशि मात्र 8000₹ होती है। हालांकि अन्य सभी तरह के फेलोशिप चारों विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को मिलता है।
फेलोशिप की धनराशि कौन जारी करता है
उच्च शिक्षा पूरी तरह से भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन आता है। लेकिन इसे मॉनिटरिंग के लिए एक स्वायत्त संस्था यूजीसी-यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) का निर्माण किया गया है, जो उच्च शिक्षा के तरह फेलोशिप की धनराशि जारी करता है ताकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शोध कार्य सुनिश्चित किया जा सके।
फेलोशिप को सरकार क्यों सीमित करना चाहती है
उच्च शिक्षा में फेलोशिप पाने के लिए वर्ष में 2 बार होने वाले UGC/CSIR/ICAR NET परीक्षा में उच्चतम स्तर पर अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को उच्च शिक्षा में शोधकार्य करने के लिए जूनियर रिसर्च फेलोशिप JRF Fellowship प्रदान करती है। लेकिन इसकी संख्या बेहद कम होती है, जो बेहद चिंताजनक विषय है। सभी शोधकर्ताओं का JRF हो जाए यह संभव नहीं है।
मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को क्यों बंद किया
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई सरकार ने सच्चर कमेटी के शिफारिश पर अल्पसंख्यक समुदाय के शोधकर्ताओं के लिए उच्च शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप की व्यवस्था की गई थी जिसे वर्तमान नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने यह कहकर बंद कर दिया कि यह फेलोशिप अन्य फेलोशिप को ओवरलैप करती है। इस निर्णय से उच्च शिक्षा का ख़्वाब देखने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के शोधकर्ताओं को तगड़ा झटका लगा है।
दलित, बहुजनों के फेलोशिप संख्याओं में कटौती की जा रही है
देश के उच्च शिक्षा के मुख्यधारा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अंत्यंत पिछड़ा वर्ग के शोधकर्ताओं के लिए भी यूजीसी ने फेलोशिप का प्रावधान किया था। लेकिन हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि वर्तमान सरकार ने इनकी फेलोशिप में ढेर सारे अड़चने लगा दिए हैं ताकि इस समुदाय के शोधकर्ताओं को उच्च शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित न हो। इसके नियमावली को कठिन बना दिया गया है।
आखिर नॉन नेट फेलोशिप की धनराशि कब संशोधित की जाएगी
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जो शोधार्थी शोधकार्य में निरंतर अपना समय दे रहे हैं उन्हें इस कार्य के लिए धनराशि की आवश्यकता होती है जो उन्हें यूजीसी के माध्यम से फेलोशिप से प्राप्त होता है। लेकिन सेंट्रल यूनिवर्सिटी में अत्यधिक मात्रा में नॉन नेट फेलोशिप वाले शोधकर्ताओं की भीड़ लगी है जो निरन्तर अपने शोधकार्य में लीन है लेकिन सरकार की अपेक्षा का भी शिकार हैं क्योंकि दशकों पुरानी नॉन नेट फेलोशिप की दर है जो महज 8000₹ मात्र है । जो इस कमरतोड़ मंहगाई में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अभी हाल में JRF फेलोशिप की धनराशि में संशोधन हुआ है जो पहले 31000₹ बेसिक था अब वह बढ़कर 37000₹ बेसिक हो गया है।