Quantcast
Channel: Campus Watch – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1737

“इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पुराने स्टूडेंट्स राजनीति चमकाने के लिए क्लास बंद करा रहे हैं”

$
0
0

हम पहले भी कह चुके है कि बिना छात्रों से चर्चा किए फीस वृद्धि करना बिल्कुल गलत है और वो भी एक साथ 4 गुना फीस वृद्धि करना बिल्कुल गलत है। प्रशासन का छात्रों से बात नहीं करना, VC का घमंड में चूर रहना और भी गलत है। लेकिन क्या इसमें केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की गलती है ? सरकार की कोई जिम्मेदारी व जवाबदेही नहीं है ? अविभावकों आदि की कोई जवाबदेही व जिम्मेदारी नहीं है ?

जब सरकार कह रही है कि हम यूनिवर्सिटी को अधिक फंड नहीं दे सकते तो फिर विश्वविद्यालय के पास दूसरा क्या उपाय है ? क्या आप के लिए व आपके अपनों के लिए चुनावों में वोट करते समय शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी कोई मुद्दा होता है? आप चुनावों में क्या देख के वोट करते है ?

कोई भी शैक्षणिक संस्थान हो, क्या किसी को बिना पहचान पत्र / ID Card के अंदर जाने देना चाहिए ?

कोई भी समस्या हो तो विश्वविद्यालय प्रशासन व छात्रों और प्रवेश लेने के इच्छुक उम्मीदवारो के बीच सीधा संवाद होना चाहिए। ज़रूरी हो तो सरकार, शिक्षा विभाग के नुमाइंदे व निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी शामिल हों लेकिन पूर्व छात्रों का कौन सा अधिकार है ?

उन्होंने अपनी नेतागिरी चमकाने के चक्कर में पूरे सत्र की वाट लगा दी है। खुद तो नेतागिरी के बल पर बिना पढ़े ही पास हो जाना है; नेताओं व चेलो को पहले ही पेपर मिल जाता है। जिन छात्रों को इन सब चीजो से नहीं मतलब है, कम से कम उन्हें तो पढ़ने दो! प्रोफेसरों को पढ़ाने दो। बाकी आप व प्रशासन ये खेल खेलते रहो!

पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहलाने वाले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ना समय से एडमिशन हो पा रहा है, ना समय से क्लास चलती है और ना समय से परीक्षा व ना समय से रिजल्ट। गिन लीजिए कि AU व उसके कॉलेजों में कितने दिन क्लास चलती है।

उत्तर प्रदेश और भारत के शैक्षणिक संस्थान रैंकिंग में एकदम पीछे हैं। इसका कारण है नेतागिरी, राजनीति व टीचर्स का जिम्मेदारी से ना पढ़ाना। अभिभावक / मतदाता भी इन सब ध्यान नहीं देते

ये जो पूर्व छात्र, नेता घायल होते है; मुझे उनके माता पिता से मिलना है; बात करनी है । मेरे जैसे बहुत सारे छात्र आज भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का नाम सुन के केवल पढ़ने आते है इसीलिए कृपया Classes को चलने दे; प्रोफेसर्स को पढ़ाने दे व Students को पढ़ने दे।

मैं हिंसा के खिलाफ हूँ ! रवीश कुमार की बातों से सहमत हूँ कि सभी को किसान आंदोलन व शाहीन बाग आंदोलन से सीखने की जरूरत है

जिस मुद्दे पर वोट दोगे, वही मिलेगा ना ?

जब शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी चुनाव/वोटिंग का मुद्दा ही नहीं तो फिर आप इस पर काम की उमीद कैसे कर सकते है ? अगले चुनावों में सही मुद्दों पर वोटिंग करना !

जितने छात्र नेता भारत में होते है, क्या उतना किसी और देश में भी होते है ?

जब छात्र नेता लोग बिना पढ़े ही पास हो जाएंगे तो फिर वे ऐसे ही बात बात पर गुटबाजी, हिंसात्मक आंदोलन ही करेंगे ना ? लेकिन इससे दूर दराज से पढ़ने के लिए आने वालों Students का नुकसान होता है इन्ही सभी कारणों से आज उत्तर प्रदेश, भारत के शैक्षणिक संस्थान रैंकिंग में नहीं आते है

2019 में 31 दिसंबर को कुलपति प्रोफेसर रतनलाल हांगलू ने इस्तीफा दे दिया था.  उन पर भ्रष्टाचार समेत तमाम अनियमितताओं के आरोप लगे थे। उनके इस्तीफे के बाद से इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में तीन अस्थाई कुलपति बने, लेकिन स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं हो सकी थी। फिर बिना योग्यता के ही संगीता श्रीवास्तव को 30 नवंबर 2020 को इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का उपकुलपति नियुक्ति किया गया। यह नियुक्ति चीफ विजिटर राष्ट्रपति (मोदी सरकार) ने की थी । यह गुजरात के चीफ जस्टिस विक्रमनाथ की पत्नी है । गलत तरीके से नियुक्त हुए कई उपकुलपतियों को हटाया गया लेकिन प्रो० संगीता श्रीवास्तव जस की तस अपने पद पर बनी हुई है ।

यहाँ न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होते है, क्या पत्नी को बढ़िया पद के बदले जस्टिस विक्रमनाथ BJP सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते है ? क्या यह कोई साठगांठ है ? यह पूरा मामला अब भारतीय संसद में भी उठाया जा चुका है ।

जब कुलपति, उपकुलपतियों, प्रोफेसरों आदि के नियुक्ति में ही इतना झोलझाल है तो फिर हम समझ सकते है कि उत्तर प्रदेश, भारत सभी इंडेक्स में इतना पीछे क्यो है ? प्राइमरी का टीचर बनने के लिए स्नातक करो, बीएड करो फिर TET पास करो और आठवीं के बाद के लिए ऐसे ही टीचर बन जाओ ? उच्च शिक्षा में ऐसे ही नियुक्ति पा लो? कुलपति - VC ऐसे ही बन जाओ?

समझ रहे है ना कि हम क्या कहना चाहते है ? आठवीं तक पढ़ाने के लिए अधिक जानकारी चाहिए या फिर उससे ऊपर के स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए ? फिर कोई निश्चिंत नियम - कानून क्यो नहीं है ?

ऐसे ही महिला आयोग आदि में भी नियुक्ति का कोई ठोस, प्रामाणिक, स्पष्ट नियम कानून नहीं है; जो है, उसका भी पालन नहीं होता है । यह सब हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करते है ।

इन सभी विषयों पर व्यापक रूप से चर्चा होनी चाहिए

लेकिन अफसोस जब लोग असली नेता, MLA, MP या अधिकारी बन जाते है तो वे ये सब भूल जाते है। लोग भूल जाते है कि हम अपने आगे के पीढ़ी के लिए क्या छोड़ रहे है।

मैं मानता हूँ कि

1. बिना चर्चा के एक साथ 4 गुना फीस वृद्धि बहुत ही गलत है । अगर फीस वृद्धि करना भी था तो थोड़ा थोड़ा करके करना चाहिए था ।

2. शैक्षणिक संस्थान कोई घूमने के स्थान नहीं है इसीलिए बिना I'D Card / पहचान पत्र के किसी को भी अनायास ही कैम्पस नहीं जाना चाहिए, पूर्व छात्रों को भी यह समझना चाहिए । हर गेट पर गार्ड की व्यवस्था हो, जिससे Classes बाधित ना हो ! छात्रसंघ भवन पर कुछ शर्तों के साथ लोगो को आने दिया जाए लेकिन बाकी कैम्पस में नहीं ।

3. हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है । प्रशासन को समय पर समय Students से बात चीत करनी चाहिए ।

4. सरकार को भी शैक्षणिक संस्थानों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ।

5. मैं छात्रों के लोकतांत्रिक आंदोलन के साथ खड़ा हूँ । भारत के हर नागरिकों की बात सुना जाना चाहिए । सभी जायज माँगो को पूरा किया जाना चाहिए ।

बहुत लोगो को मेरी बातें कड़वी लगती है लेकिन अपने बातों को शांति पूर्व तरीके से कहना मेरा संवैधानिक अधिकार है; आशा है कि इसके लिए कोई मेरे साथ मारपीट आदि नहीं करेगा

मेरा पुराना लेख पढ़ के 4-5 लोग Message करके मेरे बारे में जानकारी ले रहे है, ये सही नहीं है । अगर किसी के बातें पसंद नहीं है तो संवैधानिक तरीके से उसका विरोध कीजिए लेकिन हिंसा, मारपीट, ज़बरदस्ती बहुत गलत है ।

बाकी आप समझ सकते है कि मैं क्या कहना चाहता हूँ, उसी बात तो कई तरीकों से लिख के लेख को बड़ा करने का कोई फायदा नहीं


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1737

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>