हमने 3 और 4 मई 2017 को गलगोटिया यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स से डिबार्ड (वचित) फीस के नाम पर हो रही अवैध वसूली का जब विरोध किया, तब विश्विद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच डी.एम ने समझौता करा दिया। यूनिवर्सिटी द्वारा छात्रों की मांगें पूरी करने का वादा भी किया गया।
इन सबके बीच ना तो कोई मांगे पूरी हुईं और ना ही कोई वादे। इस मामले को छलपूर्वक दबा दिया गया और गलगोटिया यूनिवर्सिटी द्वारा 14 सितम्बर 2017 को कुछ स्टूडेंट्स को स्थगित कर 2 दिन का समय देते हुए अभिभावक बुला कर लिखित में जवाब मांगा, जिसके उपरांत 5 अक्टूबर 2017 को 11 स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी द्वारा निष्कासित कर दिया गया।

इन 11 स्टूडेंट्स की फोटो के साथ नोटिस लगाकर यूनिवर्सिटी कैंपस में एंट्री भी बैन कर दी है, जो कि अमानवीय है। कुछ स्टूडेंट्स की उंची पहुंच के कारण वापस ले लिया गया।
आज से चार महीने पहले गलगोटिया विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स ने परीक्षा में अवैध वसूली को लेकर परीक्षा पत्र देने के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए उनका विरोध भी किया था, जिसका अंजाम आज उन स्टूडेंट्स को झेलना पड़ रहा है।
यूनिवर्सिटी द्वारा 04 स्टूडेंट्स पर तानाशाही रवैया दिखाते हुए अब उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। क्या अवैध कार्य के खिलाफ छात्र आवाज़ नहीं उठा सकते? कब तक स्टूडेंट्स के आवाज़ दबाए जाएंगे?
मैं चाहूंगा कि हमारी आवाज़ को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचाया जाए ताकि हमारे साथ न्याय हो सके। मौजूदा हालातों को देखते हुए स्टूडेंट्स की उम्मीद तो टूट ही चुकी है।

05-05-2017 को गौतमबुध नगर के सीईओ के सामने विश्वविद्यालय के साथ फैसला हो गया था, जहां विश्वविद्यालय के वीसी ने हमारी सभी बातों को मान लिया था लेकिन 07/05/2017 को विश्वविद्यालय द्वारा 11 स्टूडेंट्स को परीक्षा से संस्पेंड कर दिया गया।
इसके बाद 09-05-2017 को कोर्ट का आदेश आते ही यूनिवर्सिटी ने अपने फैसले पर रोक लगाई। 14-09-2017 को 11 स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय द्वारा निष्कासित कर दिया गया।
अब हम सभी छात्र डरे हुए हैं और हमें गलत तर्कों से धमकियां दी जा रही हैं। हमारे भविष्य के साथ हमारे ही विश्वविद्यालय में खेल खेला जा रहा है। अब आप ही तय कीजिए कि इसका ज़िम्मेदार कौन होगा, हम या वे?
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